Thursday 3 November 2011

मित्र


नवीन   कंपनी  मधला  पहिला  दिवस  म्हणजे  जरा  वेगळेच  दडपण  असते . भले  ती  तुमची  पहिली  कंपनी  असो  वा  तिसरी . पण  मला  मात्र  या  नवीन  कंपनी  मधल्या  पहिल्या  दिवसाचे  कायमच  अप्रूप   वाटत आलंय.

नवीन  location , नवीन  लोक  , नवीन  culture , नवीन  काम  (?) आणि  सर्वात  महत्वाचे  म्हणजे  नवीन  मित्र  मैत्रिणी  (हो  .. जरा  जास्तच  extrovert असल्याने  नवीन  ठिकाणी  मी  खूप  मित्र  जमवायचा  प्रयत्न  करतो  … निवड  चुकल्याने  बऱ्याचदा  तोंडावर  पडतो  तो  भाग  वेगळा  !!)

तर  असाच  विचार  करत  मी  या  वर्षी  tieto कंपनी  जॉईन  केली . Joining   च्या  दिवशी  20-22 लोकांमध्ये  बसलो  होतो  आणि  as usual टेहळणी  चालू  झाली  होती . काही  प्रेक्षणीय  स्थळ  माझ्याबरोबर  जॉईन  झाली  आहेत  का  ते  बघत  होतो  पण  तिसऱ्या  कंपनी  मध्ये   पण  घोर  निराशाच  झाली  !! (फार  काही  अपेक्षा  नव्हत्या  हो  मझ्या  …पण  ते  जाऊदे  )

पहिल्या दिवशी  लोकांशी  तोंड   ओळख  झाली  आणि  एक  दोन  मुलांशी  जुजबी  बोलणे  पण  झाले . तेंव्हा  त्याच  २०  लोकांच्यात  बसलेला  'हा'  मुलगा  अजिबात  दिसला  नाही  .. तो  गर्दीत  उठून  दिसणारा  नाहीच  मुली . एकदम  साधा  राहणारा  . सिम्पल   फॉर्मल  कपडे  घालून  , चष्मा  लावून  बहुतेक  लास्ट  रो   मध्ये  बसला  असावा . पहिले  ३  दिवस  आम्ही  २०  लोक  एकाच  conference रूम  मध्ये  होतो  पण  या  मुलाचे  अस्तित्व  सुद्धा  जाणवले  नाही  .

३  दिवसानंतर  सगळ्यांना  डेस्क  allocate   झाली  आणि  मी  माझ्या  डेस्क  वर  येऊन  बसलो  . दुसऱ्या  दिवशी  या  मुलाचा  मला  communicator   वर  पिंग  आला  . मी  नाव  वाचले  पण  कोण  हा  मुलगा  ते  माहित  नसल्याने  दुर्लक्ष  केले . त्याने  परत  पिंग  केले  . joining   ला  ज्या  काही  formalities complete करायच्या  असतात  त्यातले  त्याला  काही  तरी  अडले  होते  . तो  माझ्या  डेस्क  वर  आला  . मी  त्याला  हवी  असलेली  माहिती  दिली  आणि  उपजत  आगाऊपणे   त्याच्याकडे  एक  “काय  पण   कटकट  आहे  राव  ..” असा  कटाक्ष  टाकला  .. त्याने  उपजत  समजुतदारपणे  दुर्लक्ष  केले  आणि  हवी  ती  माहिती  घेऊन  निघून  गेला . थोड्या  दिवसांनी  त्याने  आणि  मी  एकच   बस  जॉईन   केली . बस  मध्ये  समोरासमोर  आल्यावर  एखाद  दोन  शब्द  बोललो  असू . काही   दिवसांनतर  एकदा  ४    वाजता  त्याचा  मला  पिंग  आला  कि  चहा  ला  येणार  का  ? नुकतीच  झोप  झाली  असल्याने  मला  पण  चहाची  गरज  होतीच  म्हणून  मी  हो  म्हणालो  आणि  मग  रोजच  आम्ही  दोघ  ४  वाजता  चहा  ला   बरोबर  जायला  लागलो . पहिल्या   ३ -४   दिवसातच  मी  ओळखले  कि  हा  तर  माझ्या  exactly opposite मुलगा  आहे  .

हा  मुलगा  समोरून  एखादी  सुंदर  मुलगी  गेली  तर  बघत  पण  नाही  (किंवा   बघून  न   बघितल्यासारखे   करतो ) हा  खूपच  कमी  बोलतो  आणि  आपले  काम  बरे  आणि  आपण  बरे  अश्या  विचारांचा  आहे . हा  बिलकुल  कोणावर  sarcastic comment   मारत  नाही .

हा  क्रिकेट खेळाडूंबद्दल  बोलताना  शिव्या  देऊन  बोलत  नाही  . in fact हा  कधी  शिवीच  देत  नाही  (मला  एकदा  तरी  याला  करकचून  शिव्या  देताना  ऐकायचे  आहे  . मला  खात्री  आहे  कि  याने  शिवी  दिली  तरी  ओवी  म्हटल्यासारखे   वाटेल  . नाही  तर  मी , ओवी  म्हणालो  तरी  समोरच्याला  शिवी  दिल्याचा  भास  होतो !! )

ह्याने  कधीच  कोणाचा  मार  खाल्ला  नसेल . शाळा  किंवा  कॉलेज  मधून  पळून  गेला  नसेल . रात्री  १२  वाजता  रस्त्यावर  धिंगाणा  घालून  वाढदिवस  celebrate केले  नसतील   . नुसते  dinner साठी  लोणावळ्याला  जायचा  मूर्ख  पण  केला  नसेल . कधीच  कोणाशी  भांडला  नसेल .

थोडक्यात  काय  तर  हा  अगदी  साधा  सरळमार्गी  सज्जन  मुलगा  आहे  हे  मी  ३ -४   दिवसात  ओळखले . (याने  संपूर्ण  शैक्षणिक  कारकिर्दीत  जेवढी  कॉपी  केली  नसेल  तेवढी  कॉपी  तर  मी  लहानपणीच   गणिताच्या  पेपरला   केली  असेल !! )  अश्या  या   २  संपूर्ण  भिन्न  प्रवृत्तीच्या  लोकांना  एकत्र  आणून  देवाने  काय  साधले  काय  माहित  असे  मला  वाटायला  लागले . पण  तरी  रोज  ४  चा  चहा  त्याच्या  बरोबर  चालू  ठेवला  आणि  तो  बंद  केला  असता  तर  आज  किती  चांगला  मित्र  गमावला  असता  याचा  विचार  न  केलेलाच  बरा .

हळू  हळू  आमच्या  गप्पांचे  विषय  बदलू  लागले  आणि  अचानक  काही  साक्षात्कार  झाले  ते  असे  –

मराठी  साहित्यात  पु . ल  , क्रिकेट  मध्ये  सचिन  , द्रविड  , commentators मध्ये   हर्षा  , राजकारणात  राज  , picture मध्ये   नाना  पाटेकर  अशी  आमची  त्या  त्या  क्षेत्रातली  दैवत  match   होत  होती . क्रिकेट , संगीत  , राजकारण  , नाटक  , सिनेमा  या   गोष्टींवर  चर्चा  रंगू  लागल्या  आणि  मग  ४  वाजता  चहा  साठी  त्याचा  पिंग  यायच्या  आधी  मी  त्याला  पिंग  करू  लागलो .

पु  ल  आणि  एकूणच  मराठी  साहित्याविषयी  याचे  प्रेम  अफाट . त्याने  ग्रेस  ,  पाडगावकर   यांच्या  वर  बोलायला  सुरवात  केल्यावर  मला  गप  बसणे  भाग  होते . मग  मी  माझे  हुकमी  शस्त्र  काढले  . शिरीष  कणेकर  . मला  भेटायच्या  आधी  त्याने  कणेकर  कितपत  वाचले  होते  माहित  नाही  पण  लगेचच  त्याने  कणेकरांची  खूप  पुस्तके  वाचली  आणि  त्यांना  मेल  करून  अभिप्राय  कळविण्या  इतपत  त्यांचा  fan   झाला .

त्याच्याकडे  असलेल्या  पुस्तकांची  संख्या  ४००  पेक्षा  जास्त  आहे  हे  जेंव्हा  मला  कळले  तेंव्हा  react कसे  करावे  ते  कळेना  . मी  कुठल्याही  पुस्तकाचे  नाव  काढले  कि  त्याने  ते  वाचलेले  असायचे  !!

शेवटी  द्वारकानाथ  संझगिरी  ची  काही  पुस्तके , 'आहे corporate तरी... '  आणि  सुहास  शिरवळकरांचे   दुनियादारी  त्याने  वाचले  नव्हते  त्यामुळे  मी  त्याच्या  वर  १  point स्कोर  करू  शकलो   :)

पुढच्या  १०  दिवसात  त्याने  ती  पण  पुस्तके  वाचली  आणि  मी  score केलेला  एक  point पण  हिरावून  घेतला  :)

मराठी  साहित्याची  हि  गत  तर  क्रिकेटची  वेगळीच  गत . तिथे  दोघांचे  हि  देव  सेम   होते   आणि  क्रिकेट  इतिहासाचे  वेड  पण !!
याला  टेनिस   किंवा  Football काय  माहित  नसेल  या  अविर्भावात  मी  टेनिस   आणि  football विषयी  बोलायला  लागलो  पण  टेनिस  मध्ये  ह्याचा  आवडता  खेळाडू  नदाल  आणि  माझा  फेडरर !!

Football मध्ये  याची  team Man U आणि  माझी  arsenal असल्याने  बोलणे  तिथेच  खुंटले  . एरवी  मी  नदाल  fans किंवा  Man u fans शी  तावातावाने  भांडलो  असतो  पण  याच्याशी  भांडता  येत  नाही  कारण  हा  मला  चीथवणारा response देणार  नाही  :)


एकदा  या  मुलाने  बस  मध्ये  पेढे  वाटले  . कारण  काय  तर  याने  कॅमेरा  घेतला  होता . तो  कॅमेरा  ३२०००  चा  आहे  कळल्यावर   मी  shock   झालो  . इतका  महागाचा  कॅमेरा  असतो  हे  पण  मला  माहित  नव्हते  . हळू  हळू  त्याचे  photography skill पाहिले   आणि  मी  काढतो  त्या  फोटोंना  फोटो  म्हणायची  मला  लाज  वाटू  लागली . केवळ  photography   साठी  आम्ही  ४  मित्र  एकदा  कोकणात  गेलो . Photography skill तर  अफलातून  आहेच  पण  याचे  कोकण  प्रेम  पाहून  मी  थक्क  झालो . Trip   वरून  आल्यावर   याने  लिहिलेले  कोकणावरचे लेख  मस्त  होते  . (त्या   ट्रीप  मध्ये  मी  फोन   करून  एका  माणसाकडे  आमच्या  जेवणाची  सोय  केली  होती  पण  काही  प्रोब्लेम  मुले  ते  बुकिंग  cancel झाले  तेंव्हा  “अरे  कोकणात  कोणाचेही  दार  ठोठवा   जेवण  नक्की  मिळणार  ” असा  त्याने   धीर  दिला  होता  !!)

कुठलेही  २  मित्र  एकत्र  भेटल्यावर  जो  विषय  चर्चिला  जातोच  जातो  तो  विषय  म्हणजे  लग्न . त्या  बाबतीत   त्याची  मत   एकदम   स्पष्ट   आहेत  आणि  एकदम  perfect . तेंव्हापासून  एखादी  चांगली  मुलगी   दिसली  कि  तिची  पत्रिका  आम्ही  दोघ  मांडायला  लागलो  :)

हळूहळू  आमच्या  गप्पांना  ४  चा  चहा  चा  वेळ  कमी  पडू  लागला  आणि  ऑफिस  communicator वर  chatting ला  ऑफिस  चा  वेळ कमी   पडू  लागला  म्हणून  घरी  गेल्यवर  sms वर  बोलायला  लागलो . ब्रिटीश  library मध्ये  एखादी  सुंदर  मुलगी  पाहिल्यावर  किंवा   घराजवळ  एखादी  सुंदर  मुलगी  पाहिल्यावर  त्याचे  येणारे  sms वाचून  खूप  हसू  यायचे  :)

त्याच्या  मित्रांचे  हनीमून  चे  किस्से  सांगून  पण  त्याने  मला  खूप  हसवलंय  :)

एका  सामाजिक संस्थेच्या 'annual day ' ला  मी  याला  बोलावले . काहीही  कुरकुर  न  करता  हा  रविवारी  सकाळी  आला  होता  आणि  शांतपणे  सगळा  कार्यक्रम  एकट्याने  पहिला . कार्यक्रमानंतर  माझे  अभिनंदन  केले  आणि  पुढच्या  रविवार  पासून  न  चुकता   social work करायला  माझ्याबरोबर येऊ  लागला .

हा  चांगल्याला   चांगले  म्हणतो  आणि  चुकत  असेल  तर  लगेच  सांगतो  .

ऑफिस मध्ये  आम्ही  एक  activity  केली   होती  तेंव्हा  त्याला  यायला  जमणार  नव्हते  . अशा  वेळी  “तु भीड  रे  .. फुल  नड .. आपला support आहे  ”  असे  तोच  सांगतो  आणि  माझे  जर  काही  चुकत  असेल  (जे  बऱ्याचदा  होते ) तर   “नको  लोड   घेऊ  .. काही  फायदा  नाही  याचा  …सोडून  दे  ” हे  पण  तोच  सांगतो
एखादे पुस्तक किंवा माझे लिखाण जर मी अयोग्य माणसाला वाचायला देत असेल तर "भाई , दान सत्पात्री असावे .. उगाच कोणाला पण वाचायला नको  देऊ " असे त्यानेच सांगितले होते

कुठल्याही  नाटकाचे  टीकिट   काढताना  मी  त्याला  "येतो  का ?"  विचारल्यावर  त्याने  नाही  कधीच  म्हटले  नाही . नाटकाला  आमच्या  बरोबर  माझे  'अवलादी'  मित्र  किंवा कधी कधी   माझ्या  मित्रांचे  आई  बाबा  पण असायचे तरी  याला   बोर  कधीच  झाले  नाही . 

एकदा  सहज  म्हणून  आम्ही  ३ -४  मित्र  रानडे  institute च्या  कॅन्टीन  मध्ये  जमलो  होतो  . गप्पा  आणि  चहा  साठी . त्या  एका  मामुली  जागेवर  आम्ही  जमवलेल्या  कट्ट्यावर  याने  लिहिलेला  लेख  केवळ  अप्रतिम . तसाच  भरत  नाट्य  मंदिर  वर  लिहिलेला  लेख  .. एखाद्या  साध्यातल्या  साध्या  गोष्टीकडे  /  घटनेकडे  बघण्याचा  याचा  दृष्टीकोन  खूप  आवडला  ..

लहान  लहान   गोष्टींचे    हटकून  कौतुक  करण्याची  याची  सवय  फार  चांगलीये . मग  ती  गोष्ट  काहीही  असो . मी  लिहिलेले  लेख  , मी  वाचायला  दिलेली  पुस्तके  यावर  अभिप्राय  कळवणारच  . एवढेच   काय  माझ्या  घरी  पहिल्यांदा  येऊन  गेल्यावर  “तुझ्या  घरी  आल्यावर   कसे  अगदी  'घरी' आल्यासारखे  वाटते . आता  मला  पुण्यात  अजून  एक  हक्काचे  घर  मिळाले  जिथे  जाऊन  मी  कधीही  दार  ठोठवू शकतो  आणि  सांगू  शकतो  कि  मी  आलोय !!” असा  त्याने  केलेला  sms चांगला  लक्ष्यात  राहिलाय !

हळू  हळू  स्वतःचे  एक  एक  रंग   दाखवणाऱ्या  या  मित्राने  कविता  आणि  गझल  सुद्धा  लिहून  दाखवली  !!
मी  त्याच्या  कडून  खूप  शिकलो  आणि  खूप  शिकायचे  बाकी  आहे . माझ्याकडून  त्याला  काहीच  शिकण्यासारखे  नसल्याने  तो  माझ्या  बोलण्यात  हमखास  येणारे  चित्र  विचित्र  शब्द  शिकला  (भाई  , लोड  , दुकान  उघडले  , byeeee reeee) आणि  त्याचा  प्रयोग  माझ्यावरच  करू  लागला  :)

७  महिन्यांपूर्वी   या  मुलाशी  बोलण्यासाठी  मला  कारण  शोधावे  लागले  होते 
आता  पुढचे  ७  जन्म  याच्याशी  काही  बोलायचे  नसेल  तरच  कारण  शोधावे  लागेल !!
हि  तर  फक्त  सुरवात  आहे  . अजून  आम्हाला  बरच  काही  करायचे  आहे .
आमच्या  दोघांचेही  'martial status' बदलल्या  नंतरही  ,  पेपर   मधला  एखादा  चांगला  लेख  वाचल्यावर  / TV वर  एखादी  चांगली  match चालू  असेल  तर  / काहीतरी  चांगले  वाचण्यात  आले  तर  एकमेकांना  ते  सांगण्यासाठी  त्वरित  sms येतच  राहतील  याची   मला  खात्री  आहे .

पु ल  म्हणालेत  तेच  खरय  "एखाद्या माणसाची आणि आपली वेव्हलेंग्थ का जमावी आणि एखाद्याची का जमू नये, ह्याला काही उत्तर नाही. पंधरा-पंधरा, वीस-वीस वर्षांच्या परिचयाची माणसे असतात. पण शिष्टाचारांची घडी थोडीशी मोडण्यापलीकडे त्याचा आपला संबंध जातच नाही. आणि काही माणसे क्षणभरात जन्मजन्मांतरी नाते असल्यासारखी दुवा साधून जातात. वागण्यातला बेतशुद्धपणा क्षणार्धात नष्ट होतो. तिथे स्थलभिन्नत्व आड येत नाही. पूर्वसंस्कार, भाषा, चवी, आवडीनिवडी, कशाचाही आधार लागत नाही. सूत जमून जाते. गाठी पक्क्या बसतात. "
मित्रा , तुला thanks म्हणून मी आपल्या मैत्रीचा अवमान करू इच्छित नाही ..


PS –
 हा  लेख  वाचल्यानंतर   ५  मिनटात  मला  त्याचा   sms येईल  आणि  तो  कसा  असेल  याची  मला  खात्री  आहे  . तो म्हणेल   “अहो  भाई  …. वेडेत  का तुम्ही ?  आज  काय  वेगळच  दुकान  उघडलंय   तुम्ही  !! काय  लोड   आहे  ? ?  हे  असा  काहीतरी  तुम्ही  लिहिता  आणि  आमच्या  डोळ्यात  पाणी  आणता    बघा  … भाई  तुम्ही  आमच्यावर  लिहिणे  म्हणजे  सूर्या  ने  समई  च्या  तेजावर  लिहिण्यासारखे  आहे  ..असा  नसतं  भाई  .. आणि  आपल्या  मैत्रीविषयी  म्हणाल  तर  बायका  जश्या   वडाच्या  झाडाला  फेरे  घालून  हाच  पती  ७  जन्म  मिळो  म्हणत  असतात  तशी  पद्धत  जर  पुरुषांच्यात   असती  तर  मी  पण  ७  जन्म   हाच  मित्र  मिळो  असे  म्हणालो  असतो  … भाई  तुमच्या  लाडक्या  SK च्या पोटाची  शप्पथ  .. आपली  मैत्री   तुटायची  नाय  :) ”

~ केदार

4 comments:

  1. झक्कास.. मस्त लिहिलंय .. ज्याच्यावर लिहिलंय तो अगदी भरून पावला असणार हे नक्की !

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  2. नवीन मित्र जोडताना..जुन्या मित्रांना विसरू नकोस म्हणजे झालं..

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  3. Sahi re..!! Mast lihilay...ani "to" kon ahe he mahiti aslyane lekh vachtana ajun maja ali..!! :)
    agadi chan Nas pakdali ahe Lekhanachi..!! go ahead..!!

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